07 October 2018

क्या गीता जैन जी फिर वही इतिहास दोहराएंगी?


सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सब ने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

दोस्तों!
वैसे तो यह कविता रानी लक्ष्मीबाई वीरता के सम्मान में लिखी गई थी। अगर कुछ फेर बदल किए जाएं तो आज मीरा भाईंदर शहर के एक राजनैतिक व्यक्ति पर यही पंक्तियाँ बहुत सटीक बैठती हैं और वो है गीता भरत जैन जी!
वैसे तो उनकी लड़ाई अभी शुरू ही हुई है लेकिन जिस तरह से उन्होंने एक प्रस्थापित व्यवस्था को चुनौती देने की हिम्मत दिखाई है वो काबिले तारीफ़ है। राजनैतिक परिपेक्ष्य में हार-जीत तो लगी रहती है लेकिन किसी बुलंद व्यवस्था को चुनौती देने का अदम्य साहस हर किसी मे नहीं होता। इस शहर की राजनीति मे देखा गया है कई दिग्गज राजनेता विरोधी पार्टी मे होने के बावजूद अपने विपक्षियों चुनौती देने की बजाय उनसे समझौता कर मीली-जुली सरकार बनाकर अपना लक्ष्य हासिल करने मे अपनी धन्यता मानते हैं लेकिन कोई ऐसा नेतृत्व नही उभरा जो शहर की जनता को अपना नेता लगे जो जनता के अधिकारों की लडाई लडता हो। और यही वजह है कि लगभग बारह लाख जनसंख्या वाले इस मीरा भाईंदर शहर में आजतक कोई "मास लीडर" बनकर उभर नही पाया है
मीरा-भाईंदर नगरवासियों को गीता जैन जी के रूप मे एक सक्षम राजनैतिक नेतृत्व दिखाई देता है। अब देखना होगा की वो इस राजनैतिक कसौटी पर कितनी खरा उतरतीं हैं! फिलहाल तो हम यह कहेंगे की "खूब लडी मर्दानी, वो झांसी वाली रानी थी"
~ मोईन सय्यद (संपादक लोकहित न्यूज)

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