06 September 2020

"मेरे मनकी बात" कौन सुनेगा? किसको सुनाऊँ? इसलिए चुप रहते हैं।

बहुत दिनों से सोच रहा था की मै भी अपने "मन की बात" कहूं लेकिन जिस तरह से भारत देश की जनता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की "मन की बात" को डिसलाइक कर रही है उससे मै अपने "मन की बात" कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा हूँ। जब देश के प्रधानमंत्री की "मन की बात" को लोग इस तरह डिसलाइक कर रहे हैं मतलब ना-पसंद कर रहें हैं! वहां मेरे मन की बात कौन सुनेगा? फिर सोचा हमारा भारत देश तो एक लोकतांत्रिक देश है और इस देश में  कंगना राणावत, राखी सावंत, एजाज खान, भाऊ हिन्दोस्तानी या ऐसे ही कोई नशेड़ी-गंजेड़ी अपराधी भी सोशल मिडिया पर विवादास्पद बयान देकर रातोरात पुरे देश की मिडिया में हंगामा मचा सकता है तो मै कम से कम सभ्य भाषा में अपनी "मन की बात" तो कर ही सकता हूँ और यही सोचकर आज काफ़ी दिनों बाद यह ब्लॉग लिख रहा हूँ। लेकिन आज का मुद्दा यह नहीं है की कौन अपने "मन की बात" कर सकता है और कौन नहीं कर सकता ! आज का मुख्य मुद्दा तो यह की है देश में बढ़ता कोरोना महामारी का प्रकोप! आज ही विदेशी अखबार बीबीसी न्यूज़ के हवाले से ख़बर आई है की पिछले 24 घंटों में भारत में कोरोना के 90 हज़ार से ज़्यादा मामले सामने आए हैं, जो अब तक का सबसे बड़ा रिकार्ड है। इस दौरान 1,065 लोगों की मौत भी हुई और कुल मौतों का आँकड़ा 70 हज़ार के पार हो गया यह ख़बर विदेशी अख़बार में इसलिए आई है क्यूंकि भारतीय मिडिया में ऐसी खबरें आजकल चर्चा का केंद्र नहीं होती। उन्हें तो बस सुशांत सिंह और रिया चक्रवर्ती जैसा मुद्दा देकर काम पर लगाया गया है की जबतक बिहार के चुनाव निपट नहीं जाते तबतक उन्हें सुशांत सिंह वाला मुद्दा ही दिखाते रहना है और जनता को यह बताते रहना है की आज देश का सबसे बड़ा और ज्वलंत मुद्दा सिर्फ और सिर्फ सुशांत सिंह की आत्महत्या है इसके लिए उन्हें जो भी मुंहमांगी रक़म चाहिए वो उन्हें मिल जायेगी। मुंहमांगी रक़म मिलने की बात आते ही सब अपने बूम और कैमेरा लेकर बस निकल पड़े अपने मिशन पर! यही वजह है की देश के सभी मीडियावाले (एकाध को छोड़ दें तो) दिन-रात अपने मालिकों का हुक्म बजाते हुए रिया चक्रवर्ती के घर के बाहर फुटपाथ पर तंबू गाड़े बैठे हैं। बेचारे दिनरात वहीँ खाते हैं वहीँ सोते हैं लेकिन खाने-पिने के बाद जो करना होता है वो कहाँ करते हैं ये तो वही जानें! देखिये आज का मुद्दा यही भी नहीं है की सुशांत सिंह वाले मामले को कितना तूल दिया जाना चाहिए! तूल दिया जाना चाहिए या नहीं दिया जाना चाहिए लेकिन किसी भी व्यक्ति की आत्महत्या के मामले को इस तरह उछाला जाना या अपने राजनैतिक फ़ायदे के लिए चुनाव में हथियार की तरह इस्तेमाल करना बिलकुल अशोभनीय ऐसा मेरे "मन की बात" कहती है। ख़ैर देश में फ़िलहाल बेरोजग़ारी, गिरती GDP, महंगाई जैसे इतने ज्वलंत मुद्दे हैं की हम बारबार मुद्दे से भटक जाते हैं। हम बात कर रहे थे देश में बढ़ते कोरोना के मरीज़ों की संख्या के बारे में और उसके चलते हो रही लोगों की मौतों के बारे में। आज के ताज़ा आंकड़े के अनुसार देश में अभी कुल मरीजों की संख्या 39 लाख़ के पार पहुँच गई है और कोई ठोस उपाय ना किये गए तो जल्द ही यह आंकड़ा 50 लाख़ तक भी पहुँच सकता है और इन 50 लाख़ मरीजों में से कितने लोग हताहत होंगे यह तो सोचने वाली बात होगी। आज देशभर में हजारों परिवारों ने अपने प्रियजनों को खोया है और अपने प्रियजन को खोने का दर्द तो वही जान सकता है जिस परिवार पर यह संकट टुटा है। हम तो ईश्वर से प्रार्थना करते हैं की चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन किसी भी परिवार से उसके प्रियजनों को खोने की नौबत ना आये। लेकिन बात तो बहुत गंभीर है क्यूंकि देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा कोरोना जैसी महामारी की चपेट में है। रूस, जर्मनी ,जपान चीन जैसे देश इस महामारी से निपटने में काफ़ी हद तक सफल हुए हैं न्यूजीलैण्ड जैसे देश में तो आज कोरोना का एक भी नया मालमा सामने नहीं आया है। विदेशों में इस भयानक महामारी से बचने के लिए कई तरह के संशोधन किये जा रहे हैं कई रूस और जर्मनी जैसे देशों ने तो इस बिमारी पर टिका भी ढूंढ निकाला है और जल्द ही इसे सफ़लता पूर्वक जनता तक पहुंचा दिया जाएगा। लेकिन अफ़सोस की हमारे देश में अभी भी इस महामारी को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा और क्यूंकि हमारे देश के प्रधानमंत्री अपने मन की बात में कहते हैं की देश के जनता को आत्मनिर्भर होने के लिए देसी कुत्ते (नोट:यहां उनका तात्पर्य शायद देश की मिडिया से है) पालने चाहिए और देसी गेम खेलने चाहिए? तो हमारे देश के प्रधानमंत्री कोरोना जैसी महामारी के प्रति कितनी गंभीरता दिखा रहे हैं। यही वजह है की सोशल मिडिया पर मोदी जी के "मन की बात" पर डिसलाइक की बौछार हो रही है। अब सबसे बड़ी और ज़िम्मेदारी वाली भूमिका होती है मिडिया की वो ऐसे गंभीर मुद्दे पर सरकार से सवाल करें सरकार की कमियों को उजागर करें और आम जनता को होनेवाली असुविधाओं के लिए आवाज़ उठाए? लेकिन आजकल जिस तरह की पत्रकारिता देखने को मिल रही हैं उससे तो ऐसे लगता है की देश अराजकता की एक गहरी खाई में धकेला जा रहा है। अफ़सोस की बात यह हैं की इस दुष्ट चक्र में देश की आम जनता अपने आप को बेसहारा-बेबस और हताश नजर आ रही है। अब देखना होगा की कब इस जनता के मन की बात सुनी जायेगी और कब इस महामारी से जनता को निज़ात मिल पाएगी। तबतक तो इस जनता को सुशांत-रिया वाला एपिसोड और प्रधामंत्री के मन की बात सुनकरही काम चलाना होगा। किशोर कुमार का बहुत मशहूर गाना है "कौन सुनेगा किसको सुनाऊँ इसलिए चुप रहता हूँ" यही हाल आज आम जनता का हुआ है।
दोस्तों! चलते चलते बस यही कहना चाहूंगा की अगर आपको मेरे "मन की बात" पसंद आई हो तो इसे शेयर जरूर करना !!!
~ मोईन सय्यद (संपादक, लोकहित न्यूज़)


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