05 August 2018

धर्मस्थापनार्थ का अर्थ क्या है?

रविवार ५ अगस्त, भाइंदर। लडाई चाहे मैदान कि हो या चुनाव कि, मैदान में लड़ने वाले सैनिक या कार्यकर्ता होते हैं लेकिन उन्हें किस तरह लड़ना है? उनके हथियार क्या होंगे? यह तय करते है रणनीतिकार ! यूँ कहिये तो किसी भी लड़ाई की सफ़लता उस रणनीति पर निर्भर होती है जिसे सलाहकार और रणनीतिकार मिलकर बनाते हैं। अगर आपके सलाहकार चाणाक्ष है, साम, दाम,दंड, भेद, सभी हथकंडे अपनाना जानते हैं और उसी तरह की रणनीति बनाते हैं तो आपकी लड़ाई जीतने की काबिलियत काफ़ी बढ़ जाती है। लेकिन वहीं अगर आपके सलाहकार चापलूस हैं और वो सिर्फ़ आपको ख़ुश करने के लिए ऐसी सलाह देते हैं जो आपको अच्छी लगती है तो यूँ समझिये की आपको दुश्मन की जरुरत ही नहीं क्योंकि आपके सबसे बड़े दुश्मन तो आपके बगल में बैठे होते हैं।
इन दिनों मीरा भाइंदर शहर में पूर्व महापौर, नगरसेविका गीता जैन जी और विद्यमान विधायक नरेंद्र मेहता जी  की राजनैतिक द्वंदता की काफ़ी चर्चा हो रही है। गीता जैन जी ने विधायक नरेंद्र मेहता के विद्यमान १४५ विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की अपनी इच्छा ज़ाहिर कर एक तरह से नरेंद्र मेहता जी को राजनैतिक चुनौती ही दी है। हालाँकि इस विधानसभा क्षेत्र से किसे टिकट देना है यह तो भारतीय जनता पार्टी तय करेगी और इसके सबसे पहले दावेदार नरेंद्र मेहता जी ही होंगे क्यूंकि वो खुद इस विधानसभा से चुनाव जीतकर विधायक बने हैं। अब विद्यमान विधायक का टिकट काटकर गीता जैन जी को टिकट कैसे मिलेगा यह तो सबसे बड़ा सवाल है ही लेकिन जिस नरेंद्र मेहता ने अपने दमपर महानगरपालिका चुनाव में भाजपा को बड़ी जित दिलाते हुए पूर्ण बहुमत से सत्ता हासिल की है उन्हें पार्टी कैसे नजरअंदाज करेगी यह भी बड़ा सवाल है। 
गीता जैन जी की सबसे पहली चुनौती तो यहीं से शुरू होती है। पता नहीं गीता जैन जी के सलाहकार कौन है? जिन्हे लगता है की पार्टी विद्यमान विधायक और महापौर के टिकट काटकर गीता जैन जी को टिकट देगी? यह कैसे संभव है? 
मीरा भाइंदर शहर में इन दिनों एक और बात की काफ़ी चर्चा हुई वो यह  की "धर्मस्थापनार्थ" के  पुरे शहर में बड़े-बड़े होर्डिंग लगाए गए। शहर की जनता असमंजस में पड़ गई की धर्मस्थापनार्थ का अर्थ क्या है? गीता जैन जी आख़िर किस धर्म की स्थापना करने जा रही हैं? हफ्ताभर चर्चा होने के बाद गीता जैन जी ने एक प्रेस विज्ञप्ति देकर इस धर्मस्थापनार्थ का अर्थ शहर की जनता को समझाने की कोशिश की है। उन्होंने प्रेस विज्ञप्ति में कहा की धर्मस्थापनार्थ का अर्थ किसी जाती-धर्म से ना होकर राजधर्म से है। वो आनेवाले विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहती हैं और इसके लिए उन्हें लोगों के समर्थन की जरुरत है। इसलिए उन्होंने मीरा भाइंदर शहर में ये बड़े-बड़े होर्डिंग लगवाए थे। लेकिन अब यह बात समझ में नहीं आ रही है की जनता के समर्थन से धर्मस्थापनार्थ का क्या संबंध है? अगर उनका कहने का अर्थ राजधर्म से है तो उन्हें राजधर्म स्थापनार्थ लिखना चाहिए था? धर्मस्थापनार्थ लिखने का क्या अर्थ है? क्या उन्होने यह सिर्फ़ चर्चा में रहने के लिए ऐसा किया था? अगर सही में चर्चा में रहने के लिए ऐसा किया होगा तो उनकी यह बहुत ही बचकानी कोशिश कही जायेगी। धर्मस्थापनार्थ के होर्डिंग लगवाना और फीर प्रेस विज्ञप्ति देकर चुनाव लड़ने की घोषणा करना इन सभी बातों से पता चलता है की इन दिनों गीता जैन जी जो कुछ भी कर रहीं हैं वो उनके किसी राजनैतिक सलाहकार के सलाह पर कर रहीं हैं। लेकिन उन्हें यह बात याद रखनी चाहिए की चुनाव सिर्फ़ इस तरह की पब्लिसिटी के ओछे हथकंडे अपनाकर जीते नहीं जाते। चुनाव जितने के लिए तो आपको जनता के साथ सीधे संवाद बनाना, निष्णात रणनीतिकार और माहिर सलाहकार की रणनीति और कार्यकर्ताओं का मज़बूत संगठन और पैसा ख़र्च करने की उदारता इन बातों का होना बहुत जरुरी है।
चलो मान लेते हैं की किसी भी तरह भाजपा गीता जैन जी को १४५ विधानसभा क्षेत्र से टिकट देती है तो फ़िर भी उनके पास कुछएक चाटुकारों को छोड़ दें तो कार्यकर्ता हैं कितने? और जब विद्यमान विधायक के विरोध में जा कर टिकट लेंगे तो शहर के पार्टी कार्यकर्ताओं का एक बड़ा तबक़ा उन्हें चुनाव में हराने के लिए सक्रीय हो जाएगा तब उनसे निपटने के लिए उनके पास क्या कोई रणनीति है? 
इन सभी बातों को गौर से देखा जाए तो ऐसा लगता है की गीता जैन जी का विधानसभा चुनाव जीतना काफ़ी टेढ़ी खीर साबित होनेवाली है। अगर गीता जैन जी गंभीरता से चुनाव लड़ना चाहती हैं तो सबसे पहले उन्हें अपने आस-पास के ऐसे चापलूसों को हटाने की जरुरत है जो अपने निजी स्वार्थ के लिए उन्हें ग़लत सलाह देते हैं। उन्हें अब जनता के बिच खुलकर अपना पक्ष रखना चाहिए और कार्यकर्ताओं का मजबूत संघठन खड़ा करना होगा। उन्हें यह बात याद रखनी चाहिए की चुनाव सिर्फ़ पैसों के बल पर नहीं लड़े जा सकते ! इसका बड़ा उदाहरण है साल २००७ के मनपा चुनाव! जब गीता जैन जी के ससुर मीठालाल जैन जी ने इसी तरह किसी चापलूस सलाहकार के कहने पर अपनी अलग पार्टी बनाकर सोलह जगहों पर अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। मीठालाल जैन जी खुद तीन जगहों पर चुनाव लड़े थे। उन्हें यह ग़लतफ़हमी थी की चुनाव सिर्फ़ पैसों के दम पर जीते जा सकते हैं। लेकिन जनता ने उनकी सारी ग़लतफ़हमियां दूर कर दी। मीठालाल जैन जी खुद तो बुरी तरह चुनाव हारे ही उनकी पार्टी की सभी सीटों पर ज़मानत जप्त हो गई थी। इस बात से सबक़ लेते हुए गीता जैन जी को काफ़ी सोच-समझकर रणनीति अपनानी होगी वरना तो उनकी महत्वाकांक्षा पूरी होना असंभव है। 
 ऐसी स्थिती में उनके लिए संत कबीर का यह दोहा बहुत ही सटीक बैठता है !

निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।

~ मोईन सय्यद (संपादक , लोकहित न्यूज)



No comments:

Post a Comment