14 October 2018

मुंगेरीलाल के हसीन सपने?

जैसे जैसे चुनावी तारीख़ नज़दीक आती जा रही है वैसे वैसे राजनैतिक पार्टियों की सरगर्मियां भी तेज़ होने लगी हैं। भाजपा, कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय पार्टियां इस शहर में अपने-अपने वज़ूद को तलाशने में जुटी हैं। वैसे तो मीरा-भाइंदर शहर में फ़िलहाल भारतीय जनता पार्टी की एकतरफ़ा हुकूमत है। यहां के विधायक नरेंद्र मेहता २०१४ के विधानसभा चुनाव भले ही उस वक्त चल रही "मोदी लहर" में चुनाव जीत गए हों लेकिन उन्होंने अभी हाल ही में अगस्त २०१७ में हुए मनपा के चुनावों में अपने दमपर रिकॉर्ड सबसे ज्यादा ६१ सीटें जीतकर अपना दबदबा क़ायम किया है। वैसे एक वक्त ऐसा भी था जब कांग्रेस पार्टी की भी अच्छी ख़ासी पकड़ इस शहर में हुआ करती थी लेकिन अगस्त २००७ के मनपा चुनावों में कांग्रेस ने एकतरफ़ा जीत हासिल करते हुए सबसे ज्यादा ३३ सीटें जीतने के बावज़ूद अपनी राजनैतिक दूरदृष्टिता के अभाव के कारण उस वक़्त कांग्रेस के दिग्गज कहे जानेवाले नेता मुजफ़्फ़र हुसैन मनपा में अपनी सत्ता काबिज़ करने में नाक़ाम रहे और शहर में कांग्रेस के पतन की शुरुआत भी यहीं से हुई। राष्ट्रवादी कांग्रेस भी एक बड़ी पार्टी इस शहर में अपना वजूद बनाये हुए थी लेकिन किसी ज़माने में राष्ट्रवादी कांग्रेस के सर्वेसर्वा रहे गणेश नाईक के सुपुत्र संजीव नाईक २०१४ के लोकसभा चुनाव और मीरा-भाइंदर शहर पर एकछत्र राज करनेवाले गिल्बर्ट मेंडोसा के विधानसभा चुनाव हारने के साथ ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का अस्तित्व भी अब ख़तरे में पड़ गया है।
अब आनेवाले चुनावों को लगभग लगभग एक साल बचा है ऐसे में पिछले कुछ दिनों से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी मीरा-भाइंदर शहर में अपने बचे-कूचे कार्यकर्ताओं को इकठ्ठा कर पार्टी को फ़िर से खड़ा करने की कोशिश कर रही है तो वहीं कांग्रेस पार्टी भी चुनावी तैयारी में जुट गई है। इन दोनों धर्मनिरपेक्ष कही जानेवाली पार्टियों की तुलना की जाए तो राष्ट्रवादी कांग्रेस के पास तो फ़िर भी ख़ुद गणेश नाईक, संजीव नाईक, प्रकाश दुबोले जैसे कुछ बड़े चेहरे हैं जो पार्टी में नई जान फूंकने की कोशिश कर सकते हैं लेकिन वहीं कांग्रेस पार्टी में सिवाय मुजफ़्फ़र हुसैन के एक भी ऐसा नेता नहीं है जो कभी अपने वार्ड से भी बाहर गया हो। शहर का एकमात्र नेतृत्व कहे जानेवाले मुजफ़्फ़र हुसैन ने मीरा-भाइंदर शहर की कांग्रेस पार्टी में कुछ इस तरह अपनी पैठ जमाई हुई है की उनके अलावा दूसरे नंबर का एक भी नेता कभी अपना अलग से वज़ूद नहीं बना पाया या यूँ कहिये की मुजफ़्फ़र हुसैन ने बनाने ही नहीं दिया और अब उसीका ख़ामियाजा कांग्रेस पार्टी को भुगतना पड़ेगा। क्योंकि मान लो अगर पहले आनेवाले लोकसभा चुनाव में काँग्रेस और राष्ट्रवादी कॉंग्रेस अलग-अलग चुनाव लड़ने का फ़ैसला करते है तो ठाणे लोकसभा क्षेत्र के लिए कांग्रेस पार्टी के पास एक भी ऐसा चेहरा नहीं है जो लोकसभा चुनाव लड़ सके; यही हाल विधानसभा क्षेत्र का भी है। मीरा-भाइंदर शहर में दो विधानसभा क्षेत्र आते हैं एक है १४५- मीरा-भाइंदर विधानसभा क्षेत्र और दूसरा १४६-ओवला माजीवड़ा विधानसभा क्षेत्र। १४६ विधानसभा क्षेत्र के लिए ठाणे से बालासाहेब पूर्णेकर एक मजबूत दावेदार माने जाते थे लेकिन उनकी अकस्मात मौत होने के कारण अब कांग्रेस के पास इस विधानसभा क्षेत्र के लिए कोई तगड़ा उम्मीदवार दिखाई नहीं देता। तो वहीं १४५-विधानसभा क्षेत्र के लिए मुजफ़्फ़र हुसैन अपनी दावेदारी जता तो रहे हैं लेकिन राजनैतिक जानकारों का मानना है की मुजफ़्फ़र हुसैन भले ही राजनैतिक अनुभवों में सबसे वरिष्ठ हैं, "धनबल" में भी सक्षम हैं लेकिन साल २००२ से लेकर आजतक उन्होंने इस शहर की जनता के लिए जॉगर्स पार्क, कब्रस्तान और स्मशानभूमि जैसे कुछ एक कार्यों को छोड़कर दूसरा कोई ऐसा लक्षणीय कार्य नहीं किया जिसे जनता याद रख सकें। वो कभी जनता के सवाल लेकर महानगरपालिका जाते नहीं, उन्होंने कभी जनता से जुड़ा कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं किया, सत्ताधारी पार्टी भाजपा के ख़िलाफ़ वो कभी खुलकर बोलते नहीं, मनपा में फ़ैले भ्रष्टाचार को रोकने के लिए उन्होंने कभी कोई कदम नहीं उठाये हैं। उलटे कई टेंडर के भ्रष्टाचार में उनकी पार्टी के शामिल होने की अफवाएं आये दिन शहर में फैलती रहती हैं। राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है की व्यक्तिगत तौर पर भी उनके अंदर राजनैतिक दूरदृष्टि का अभाव है, उन्होंने ख़ुद से आम जनता के बिच बनाई हुई दुरी और उनके तेज़ और घमंडी स्वभाव की वज़ह से मीरा-भाइंदर शहर की जनता उनसे सीधे संवाद करने से बचती रही है और यही बड़ी वज़ह है की आम जनता ने उन्हें कभी अपने नेता के रूप में स्वीकार ही नहीं किया है।
अब भले ही मुजफ़्फ़र हुसैन आनेवाले चुनावों को ध्यान में रखकर अपने कुछ पुराने कार्यकर्ताओं को बुला-बुलाकर फ़िर से कांग्रेस के अंदर "शक्ति" द्वारा फ़िर से जान फूंकने की कोशिश कर रहे हों लेकिन जबतक वो अपने स्वभाव में एक बड़ा बदलाव लाकर शहरवासियों के बीच नहीं जाते, उनसे सीधे संवाद नहीं साधते तबतक इस शहर की जनता उन्हें अपने नेतृत्व के रूप में स्वीकार करना मुश्किल मालूम होता है।
इन सारी बातों पर ग़ौर करें तो फ़िलहाल तो मुजफ़्फ़र हुसैन को इस शहर के किसी भी में चुनाव जीत हासिल करना मतलब "मुंगेरीलाल के हसीन सपने" समान ही है।
~ मोईन सय्यद




07 October 2018

क्या गीता जैन जी फिर वही इतिहास दोहराएंगी?


सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सब ने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

दोस्तों!
वैसे तो यह कविता रानी लक्ष्मीबाई वीरता के सम्मान में लिखी गई थी। अगर कुछ फेर बदल किए जाएं तो आज मीरा भाईंदर शहर के एक राजनैतिक व्यक्ति पर यही पंक्तियाँ बहुत सटीक बैठती हैं और वो है गीता भरत जैन जी!
वैसे तो उनकी लड़ाई अभी शुरू ही हुई है लेकिन जिस तरह से उन्होंने एक प्रस्थापित व्यवस्था को चुनौती देने की हिम्मत दिखाई है वो काबिले तारीफ़ है। राजनैतिक परिपेक्ष्य में हार-जीत तो लगी रहती है लेकिन किसी बुलंद व्यवस्था को चुनौती देने का अदम्य साहस हर किसी मे नहीं होता। इस शहर की राजनीति मे देखा गया है कई दिग्गज राजनेता विरोधी पार्टी मे होने के बावजूद अपने विपक्षियों चुनौती देने की बजाय उनसे समझौता कर मीली-जुली सरकार बनाकर अपना लक्ष्य हासिल करने मे अपनी धन्यता मानते हैं लेकिन कोई ऐसा नेतृत्व नही उभरा जो शहर की जनता को अपना नेता लगे जो जनता के अधिकारों की लडाई लडता हो। और यही वजह है कि लगभग बारह लाख जनसंख्या वाले इस मीरा भाईंदर शहर में आजतक कोई "मास लीडर" बनकर उभर नही पाया है
मीरा-भाईंदर नगरवासियों को गीता जैन जी के रूप मे एक सक्षम राजनैतिक नेतृत्व दिखाई देता है। अब देखना होगा की वो इस राजनैतिक कसौटी पर कितनी खरा उतरतीं हैं! फिलहाल तो हम यह कहेंगे की "खूब लडी मर्दानी, वो झांसी वाली रानी थी"
~ मोईन सय्यद (संपादक लोकहित न्यूज)

02 September 2018

नरेंद्र मेहता जी आप लोक प्रतिनिधि हैं ! आप अपनी नैतिकता की बात कीजिए !

मीरा-भायंदर शहर के १४५ विधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक नरेंद्र मेहता जी ने भाइंदर स्थित मैक्सस मॉल में हुये मीरा-भाइंदर महानगर पालिका में भाजपा के सत्ता की वर्षपूर्ती कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को संबोधित किया। इस कार्यक्रम में उन्होंने विशेषतः पत्रकारों की ओर कटाक्ष करते हुए कहा कि आप मेरे बारे में कुछ भी लिखते हो! आप लोग मुझे चोर, भ्रष्टाचारी कहते हो! तो सोचो मेरे परिवार को कैसा लगता होगा? वो मेरे बारे में क्या सोचते होंगे? तो एक पत्रकार होने क नाते नरेंद्र मेहता जी से मेरे कुछ सवाल हैं !  मेहता जी ! जब आप जनता ने दिए वोट से चुनाव जीतकर आते हो तो आप लोकप्रतिनिधि कहलाते हो और फिर आपके लिए जनता के प्रति कुछ जिम्मेदारियां भी होती हैं। लेकिन आप के बर्ताव से तो ज़रा भी ऐसा प्रतीत नहीं होता की आप एक आदर्श लोकप्रतिनिधि की जिम्मेदारी निभा रहे हो। आप खुद ही सोचिये की क्या आप इस शहर के नागरिकों के प्रति आपकी ज़िम्मेदारी को ईमानदारी से निभा रहे हो? ऐसे कई मुद्दे हैं जो  आज सिर्फ और सिर्फ आपकी वजह से जनता को काफ़ी तकलीफें उठानी पड़ रही हैं ये रहे कुछ उदाहरण-
१)  शहर में एकमात्र सरकारी तेम्बा हॉस्पिटल है जिसमे २०० बेड की सुविधा है। और आपातकाल सुविधा भी है और गरीबों के लिए यह एक वरदान साबित होगा लेकिन आपकी राजनीति की वजह से आजतक वो अस्पताल पूरी तरह से चलाया नहीं जा रहा है। आपने खुद शहर की जनता से वादा किया था की  मै इस अस्पताल को जल्द से जल्द चालु करवाऊंगा लेकिन आज भी यह अस्पताल चालु नहीं हो पाया है। तो क्या ये आपकी ज़िम्मेदारी नहीं है की आप इस अस्पताल को जनता के लिए सुचारु रूप से चालु करवाएं?

२) आपने खुद कई जगहों पर सीआरझेड़ के नियमों का उल्लंघन कर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर निर्माण कार्य किये हैं और इसके लिए आपके ऊपर पर्यावरण अधिनियमों उल्लंघन करने लिए कई मामले अलग-अलग पुलिस थानों में दर्ज हुए हैं। अगर जिस व्यक्ति पर नियमों के पालन की और पर्यावरण को बचाने की ज़िम्मेदारी हो वही अगर नियमों का उल्लंघन करे तो क्या आपने कभी सोचा है की अगर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया गया तो शहर के विकास पर इसका क्या परिणाम होगा? कभी सोचा है?

३) आप जबसे इस शहर की राजनीति में आये हैं और नगरसेवक, महापौर और आमदार जैसी महत्वपूर्ण पदों पर रहें है लेकिन इसके बावजूद आपने और आपके नामपर चलने वाली कंपनियों ने शहर में अनेकों जगहों पर अवैध निर्माण किये है और आज भी करते ही जा रहे हैं ऐसे आरोप आपके ऊपर लगातार लगते आये हैं तो जिन लोकप्रतिनिधि पर अवैध निर्माण को रोकने की जिम्मेदारी होती है अगर वही अवैध निर्माण करेंगे तो इस शहर के विकास पर इसके कितने गंभीर परिणाम होंगे? आपने कभी इस विषय में सोचा है? क्या आपने अवैध निर्माण रोकने के लिए कभी प्रयत्न किये है?

४) मीरा भाइंदर शहर की महानगर पालिका में फैला भ्रष्टाचार एक नासूर की तरह शहर को ख़ोखला कर रहा है। मनपा के हर विभाग में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हो रहा है। एक ही रास्ता साल में कई बार खोदा जाता है और फिर बनाया जाता है। एक ही नाला सालभर में कईबार तोड़कर फिर बनाया जाता है। कमीशनखोरी के चक्कर में टेंडर निकाले जाते हैं और जनता से टैक्स के रूप वसूला गया उनकी खून-पसीने की मेहनत का पैसा रास्तों पर, नालियों पानी की तरह बहाया जाता है इसके बावजूद आज भी शहर का एक भी रास्ता लोगों के चलने लायक नहीं हैं क्या आपने कभी इस भ्रष्टाचार को रोकने की कोशिश की है? उलटे आरोप तो ये लगते आएं हैं जो कंपनियां टेंडर लेती हैं उनमे से आधे से ज्यादा कंपनियां आपकी ही है तो क्या आप कभी शहर के रास्ते सुधारने के लिए कुछ करेंगे ? क्या आपने इस भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कुछ किया है?

५) आज शहर में फेरीवाला एक गंभीर समस्या बनी हुई है लोगों को चलने के लिए रास्ता नहीं क्यूंकि पुरे रास्ते पर अवैध फेरीवालों का कब्ज़ा है। आपको शायद याद होगा की आपकी सत्ता रहते हुए फेरीवालों के ख़िलाफ़ आंदोलन करते हुए आप खुद रस्ते में बैठ गए थे। मीरा भाइंदर एक इकलौता शहर हैं जहाँ मनपा का एक भी मार्केट उपलब्ध नहीं है। उलटे  फेरीवालों को रास्ते पर बैठाया जाता है ताकि उनसे वसूली कर सकें। इस शहर में फेरीवालों से वसूली के टेंडर निकाले जाते हैं और इसमें भी आरोप लगते आये हैं की इस फेरीवाला वसूली टेंडर में आपकी भी कंपनियां हैं। आप ने आपकी सत्ता रहते फेरीवालों को रोकने के लिए कोई रणनीति बनाई है? 

६) शहर के सरकारी स्कूलों की हालत भी बहुत खस्ता है। यहाँ तीन-चार क्लास को पढ़ाने के लिए सिर्फ एक टीचर है, स्कूलों में टीचर की संख्या बहुत कम है, स्कूलों में बच्चों को अच्छी सुविधाएं भी नहीं है, लेकिन एक लोकप्रतिनिधि के नाते आप इस विषय पर गंभीर नहीं हैं क्यूंकि यहाँ बिल्डरों और उद्योगपतियों की प्रायव्हेट स्कूलें चलती हैं उनमे से ज्यादातर लोग आप से जुड़े हुए हैं। उनमे से कुछ महँगी स्कूलें आपकी भी है। तो शहर की शिक्षा व्यवस्था में सुधार कैसे आएगा?
नरेंद्र मेहता जी ऐसे और कई सार्वजनिक मुद्दे हैं जो एक लोकप्रतिनिधि होने के नाते आपकी जिम्मेदारी हैं लेकिन आप कहीं भी उनपर खरे नहीं उतर रहे हैं।
यह तो हुई सार्वजनिक मुद्दों की बात लेकिन आपकी अपनी व्यक्तगत छवि भी काफ़ी विवादास्पद रही है। जैसे अवैध बांधकाम को बचाने के लिए रिश्वत लेने का मामला हो, आरटीआई कार्यकर्ता के घर पर अपने सैंकड़ों समर्थकों के साथ मिलकर हमला करने का मामला हो, पत्रकारों के साथ मारपीट कर उनको डराने-धमकाने का मामला हो, या अभी-अभी हाल ही में शहीद मेजर कौस्तुभ राणे के शहादत के दिन नगरसेवक का जन्मदिन मनाने का मामला हो और ऐसे कई मामले हैं जो एक लोकप्रतिनिधि होने के नाते आपकी छवि को शोभा नहीं देते। अब यह आपको सोचना है और आपकी ज़िम्मेदारी बनती है की आपका आचरण कैसा हो ? यह तो आपको सोचना है की आपके परिवार वाले या इस शहर की जनता आपको किस तरह से देखते हैं या आपके बारे में क्या सोचते है। 
तो नरेंद्र मेहता जी आप पत्रकारों को तो नसीहत देने से पहले खुद सोचिए की क्या एक आदर्श लोकप्रतिनिधि की ज़िम्मेदारी आप निभा रहे हो? और ऐसे में आपको कोई नैतिक अधिकार नहीं बनता की आप पत्रकारों को नसीहत दें या उनपर पर उंगलयां उठायें।  
अंत में आपके लिए संत कबीर का यह दोहा लिख रहा हूँ। 

बुरा जो देखन मैं चला, 

बुरा न मिलिया कोय, 

जो मन खोजा आपना, 

मुझसे बुरा न कोय।



09 August 2018

आख़िर कबतक हमारी सेना के जवान राजनीति के भेंट चढ़ते रहेंगे?


एक भारतीय नागरिक की देश के प्रधानमंत्री जी से गुहार!




मोदीजी!
हमें अच्छे दिन नहीं चाहिए,
हमें नौकरियां भी नही चाहिए,
हमें पंद्रह लाख भी नही चाहिए,
हमें स्मार्ट सिटी भी नही चाहिए,
हम दो वक्त की जगह एक वक्त की रोटी खाकर भी गुजारा कर लेंगे, लेकिन सीमापार से हो रही घुसपैठ और आतंकवादी हमलों में जो हमारे देश की सेना के जवान और आम नागरिक लगातार मारे जा रहे हैं उसे रोकने के लिए आप हमारे दुश्मन देश पाकिस्तान का कुछ ऐसा बंदोबस्त किजीये की फिर कभी कोई सेना का जवान शहीद ना हो पाए और ना ही कोई नागरिक मारा जाए। मोदीजी वैसे तो देश की जनता आपके कई निर्णयों से सहमत नही हैं लेकिन फिर भी अगर आपने पाकिस्तान से हो रही घुसपैठ और सीमापार से हो रहे आतंकवादी हमले हमेशा के लिए रोक दिया तो आपका नाम देश के इतिहास में सुवर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा और इस देश की जनता आपकी सदैव ॠणी रहेगी। मोदीजी हमारे पडोसी देश पाकिस्तान से कोई खुली लडाई नही चल रही है यह एक छुपा षड्यंत्र है और हमारे देश की सेना के जवान और नागरिक एक-एक करके रोजना मारे जा रहे हैं इसका कहीं न कहीं तो अंत करना ही होगा? क्या हमारा देश इस पीड़ा को हमेशा इसी तरह सहता रहेगा? आप जरा सोचिए उस माँ पर क्या बितती होगी जिसका बेटा किसी जंग में नही बल्कि आतंकवादी हमले मे मारा जाता है, उस परिवार के बारे मे सोचिए जिनका एकमात्र आधार छिन जाता है, उस बेटी के बारे सोचिये जो भरी जवानी में विधवा हो जाती है, उस बच्चों के बारे में सोचिये जिनके सर से पिता का साया छीन जाता है ! 
मोदीजी इस आतंकवाद का अंत अब होना ही चाहिए। कई सालों से हमारा देश इस छद्म युद्ध की पीडा को सहन कर रहा है लेकिन अब इस सहनशीलता का अंत हो रहा है। मोदीजी आप कठोर निर्णय लीजिए और पाकिस्तान को हमेशा-हमेशा के लिए नेस्तनाबूत करने का पूरा देश आपके साथ मजबूती से खड़ा रहेगा।
मोदीजी राजनीति तो होती रहेगी लेकिन अब आपके पास मौका है कुछ ठोस कर दिखाने का और इसीलिए आपको जनता ने भारी बहुमत से सत्ता सौंपी है उसका इस्तेमाल करते हुए कुछ ऐसे निर्णय लीजिये की दुश्मन देश को हमेशा हमेशा के लिए सबक़ सिखाया जाये। बस हम सब भारतीय नागरिकों के दिल की बात सुन लीजिए।

धन्यवाद! 

जय हिंद! जय भारत! वंदेमातरम!
~ मोईन सय्यद (संपादक, लोकहित न्यूज़)






सन्दर्भ :-

https://www.hindustantimes.com/india-news/3-years-of-modi-govt-terrorism-claims-more-lives-in-kashmir-situation-mixed-in-northeast/story-BqKHK87xJtx9ETdnt0GuMI.html

https://www.quora.com/How-many-Indian-soldiers-and-civilians-have-been-killed-by-terrorists-and-Pakistan-since-Modi-became-prime-minister

05 August 2018

धर्मस्थापनार्थ का अर्थ क्या है?

रविवार ५ अगस्त, भाइंदर। लडाई चाहे मैदान कि हो या चुनाव कि, मैदान में लड़ने वाले सैनिक या कार्यकर्ता होते हैं लेकिन उन्हें किस तरह लड़ना है? उनके हथियार क्या होंगे? यह तय करते है रणनीतिकार ! यूँ कहिये तो किसी भी लड़ाई की सफ़लता उस रणनीति पर निर्भर होती है जिसे सलाहकार और रणनीतिकार मिलकर बनाते हैं। अगर आपके सलाहकार चाणाक्ष है, साम, दाम,दंड, भेद, सभी हथकंडे अपनाना जानते हैं और उसी तरह की रणनीति बनाते हैं तो आपकी लड़ाई जीतने की काबिलियत काफ़ी बढ़ जाती है। लेकिन वहीं अगर आपके सलाहकार चापलूस हैं और वो सिर्फ़ आपको ख़ुश करने के लिए ऐसी सलाह देते हैं जो आपको अच्छी लगती है तो यूँ समझिये की आपको दुश्मन की जरुरत ही नहीं क्योंकि आपके सबसे बड़े दुश्मन तो आपके बगल में बैठे होते हैं।
इन दिनों मीरा भाइंदर शहर में पूर्व महापौर, नगरसेविका गीता जैन जी और विद्यमान विधायक नरेंद्र मेहता जी  की राजनैतिक द्वंदता की काफ़ी चर्चा हो रही है। गीता जैन जी ने विधायक नरेंद्र मेहता के विद्यमान १४५ विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की अपनी इच्छा ज़ाहिर कर एक तरह से नरेंद्र मेहता जी को राजनैतिक चुनौती ही दी है। हालाँकि इस विधानसभा क्षेत्र से किसे टिकट देना है यह तो भारतीय जनता पार्टी तय करेगी और इसके सबसे पहले दावेदार नरेंद्र मेहता जी ही होंगे क्यूंकि वो खुद इस विधानसभा से चुनाव जीतकर विधायक बने हैं। अब विद्यमान विधायक का टिकट काटकर गीता जैन जी को टिकट कैसे मिलेगा यह तो सबसे बड़ा सवाल है ही लेकिन जिस नरेंद्र मेहता ने अपने दमपर महानगरपालिका चुनाव में भाजपा को बड़ी जित दिलाते हुए पूर्ण बहुमत से सत्ता हासिल की है उन्हें पार्टी कैसे नजरअंदाज करेगी यह भी बड़ा सवाल है। 
गीता जैन जी की सबसे पहली चुनौती तो यहीं से शुरू होती है। पता नहीं गीता जैन जी के सलाहकार कौन है? जिन्हे लगता है की पार्टी विद्यमान विधायक और महापौर के टिकट काटकर गीता जैन जी को टिकट देगी? यह कैसे संभव है? 
मीरा भाइंदर शहर में इन दिनों एक और बात की काफ़ी चर्चा हुई वो यह  की "धर्मस्थापनार्थ" के  पुरे शहर में बड़े-बड़े होर्डिंग लगाए गए। शहर की जनता असमंजस में पड़ गई की धर्मस्थापनार्थ का अर्थ क्या है? गीता जैन जी आख़िर किस धर्म की स्थापना करने जा रही हैं? हफ्ताभर चर्चा होने के बाद गीता जैन जी ने एक प्रेस विज्ञप्ति देकर इस धर्मस्थापनार्थ का अर्थ शहर की जनता को समझाने की कोशिश की है। उन्होंने प्रेस विज्ञप्ति में कहा की धर्मस्थापनार्थ का अर्थ किसी जाती-धर्म से ना होकर राजधर्म से है। वो आनेवाले विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहती हैं और इसके लिए उन्हें लोगों के समर्थन की जरुरत है। इसलिए उन्होंने मीरा भाइंदर शहर में ये बड़े-बड़े होर्डिंग लगवाए थे। लेकिन अब यह बात समझ में नहीं आ रही है की जनता के समर्थन से धर्मस्थापनार्थ का क्या संबंध है? अगर उनका कहने का अर्थ राजधर्म से है तो उन्हें राजधर्म स्थापनार्थ लिखना चाहिए था? धर्मस्थापनार्थ लिखने का क्या अर्थ है? क्या उन्होने यह सिर्फ़ चर्चा में रहने के लिए ऐसा किया था? अगर सही में चर्चा में रहने के लिए ऐसा किया होगा तो उनकी यह बहुत ही बचकानी कोशिश कही जायेगी। धर्मस्थापनार्थ के होर्डिंग लगवाना और फीर प्रेस विज्ञप्ति देकर चुनाव लड़ने की घोषणा करना इन सभी बातों से पता चलता है की इन दिनों गीता जैन जी जो कुछ भी कर रहीं हैं वो उनके किसी राजनैतिक सलाहकार के सलाह पर कर रहीं हैं। लेकिन उन्हें यह बात याद रखनी चाहिए की चुनाव सिर्फ़ इस तरह की पब्लिसिटी के ओछे हथकंडे अपनाकर जीते नहीं जाते। चुनाव जितने के लिए तो आपको जनता के साथ सीधे संवाद बनाना, निष्णात रणनीतिकार और माहिर सलाहकार की रणनीति और कार्यकर्ताओं का मज़बूत संगठन और पैसा ख़र्च करने की उदारता इन बातों का होना बहुत जरुरी है।
चलो मान लेते हैं की किसी भी तरह भाजपा गीता जैन जी को १४५ विधानसभा क्षेत्र से टिकट देती है तो फ़िर भी उनके पास कुछएक चाटुकारों को छोड़ दें तो कार्यकर्ता हैं कितने? और जब विद्यमान विधायक के विरोध में जा कर टिकट लेंगे तो शहर के पार्टी कार्यकर्ताओं का एक बड़ा तबक़ा उन्हें चुनाव में हराने के लिए सक्रीय हो जाएगा तब उनसे निपटने के लिए उनके पास क्या कोई रणनीति है? 
इन सभी बातों को गौर से देखा जाए तो ऐसा लगता है की गीता जैन जी का विधानसभा चुनाव जीतना काफ़ी टेढ़ी खीर साबित होनेवाली है। अगर गीता जैन जी गंभीरता से चुनाव लड़ना चाहती हैं तो सबसे पहले उन्हें अपने आस-पास के ऐसे चापलूसों को हटाने की जरुरत है जो अपने निजी स्वार्थ के लिए उन्हें ग़लत सलाह देते हैं। उन्हें अब जनता के बिच खुलकर अपना पक्ष रखना चाहिए और कार्यकर्ताओं का मजबूत संघठन खड़ा करना होगा। उन्हें यह बात याद रखनी चाहिए की चुनाव सिर्फ़ पैसों के बल पर नहीं लड़े जा सकते ! इसका बड़ा उदाहरण है साल २००७ के मनपा चुनाव! जब गीता जैन जी के ससुर मीठालाल जैन जी ने इसी तरह किसी चापलूस सलाहकार के कहने पर अपनी अलग पार्टी बनाकर सोलह जगहों पर अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। मीठालाल जैन जी खुद तीन जगहों पर चुनाव लड़े थे। उन्हें यह ग़लतफ़हमी थी की चुनाव सिर्फ़ पैसों के दम पर जीते जा सकते हैं। लेकिन जनता ने उनकी सारी ग़लतफ़हमियां दूर कर दी। मीठालाल जैन जी खुद तो बुरी तरह चुनाव हारे ही उनकी पार्टी की सभी सीटों पर ज़मानत जप्त हो गई थी। इस बात से सबक़ लेते हुए गीता जैन जी को काफ़ी सोच-समझकर रणनीति अपनानी होगी वरना तो उनकी महत्वाकांक्षा पूरी होना असंभव है। 
 ऐसी स्थिती में उनके लिए संत कबीर का यह दोहा बहुत ही सटीक बैठता है !

निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।

~ मोईन सय्यद (संपादक , लोकहित न्यूज)



01 August 2018

विधायक नरेंद्र मेहता को गीता जैन की खुली चुनौती?

०१ अगस्त, भाइंदर। २०१४ में महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों के बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस के सर्वेसर्वा गिल्बर्ट मेंडोंसा और कांग्रेस पार्टी के मुजफ़्फ़र हुसैन के आपस की परस्पर विरोधी राजनीति से परेशान मीरा भाईंदर शहर की जनता को एक सक्षम, निष्पक्ष और स्वच्छ छवि के नेतृत्व की अपेक्षा थी लेकिन भारतीय जनता पार्टी के विधायक के रूप में चुने गए नरेंद्र मेहता से जनता को एक तरह मोहभंग हो गया। वैसे तो इसके कई कारण है लेकिन सबसे बड़ा कारण है उनकी विवादास्पद छवि। नरेंद्र मेहता जब से मीरा भाइंदर की राजनीति में सक्रीय है तब से लेकर आज तक आये दिन किसी न किसी विवाद के चलते चर्चा में बने रहते है फिर चाहे वो अवैध बांधकाम के लिए रिश्वत लेने का मामला हो, सिर्फ़ दो नगरसेवक होने के बावजूद गिल्बर्ट मेंडोंसा से हाथ मिलाकर महापौर पद हथियाना हो, टेक्नीकल हाई स्कुल के रिजर्वेशन में प्राईव्हेट स्कुल बनाने का मामला हो, टीडीआर बेचने का मामला हो, मनपा डिस्पेंसनरी के आरक्षण में प्रायव्हेट अस्पताल बनाने का मामला हो या सीआरझेड में अतिक्रमण करने का मामला हो ऐसे कई मामले हैं जो उनके राजनैतिक कार्यकाल में विवादास्पद बने रहें है।
लेकिन अब शहर कि राजनीती मे बहुत बड़ा उलटफ़ेर होने की उम्मीद जताई जा रही है। भारतीय जनता पार्टी की पूर्व महापौर और विद्यमान नगरसेविका श्रीमती गीता जैन जी ने शहर के विधायक नरेंद्र मेहता को अब खुली राजनैतिक चुनौती दी है। इस तस्वीर से गीता जैन जी साफ़ सन्देश देना चाहती है की मीरा भाइंदर शहर की भाजपा अब परिवारवाद की ओर बढ़ रही है जो की स्वस्थ लोकतंत्र के लिए उचित नहीं है। 
जानकारों की मानें तो आनेवाले लोकसाभा चुनाव में थाने लोकसभा की सीट पर नरेंद्र मेहता सांसद का चुनाव लड़ना चाहते है तो वही १४५ विधानसभा क्षेत्र से अपनी पत्नी सुमन मेहता जी को और १४६ विधानसभा क्षेत्र से अपनी भाभी विद्यमान महापौर डिम्पल मेहता जी को चुनाव लड़वाकर शहर की पूरी राजनीति पर अपने ही परिवार का कब्ज़ा ज़माना चाहते है। इसी आशंका के चलते १४५ विधानसभा क्षेत्र से विधायकी का चुनाव लड़ने की इच्छुक गीता जैन जी ने अब विधायक नरेंद्र मेहता के ख़िलाफ़ अपना मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ स्तर से भी अपनी लामबंदी करते हुए शहर के लोगों में भी अपना पकड़ मजबूत बनाने के लिए क़मर कस ली है इसका ताज़ा उदाहरण पुरे शहर में "धर्मस्थापनार्थ" के बड़े बड़े होर्डिंग के रूप में देखने को मिले है। "धर्मस्थापनार्थ" के इन होर्डिंग के माध्यम से गीता जैन जी ने स्पष्ट सन्देश देने की कोशिश की है की मीरा भाइंदर शहर में अब अधर्म का राज नहीं चलेगा ! हम एक नया धर्म स्थापन करेंगे ! 
सोशल मिडिया पर अब ये तस्वीर ड़ालकर गीता जैन जी ने विधायक नरेंद्र मेहता पर एक और हमला किया है। इस तस्वीर के जरिये उन्होंने कार्यकर्ताओं और नेताओं को आनेवाले दिनों भारतीय जनता पार्टी को किसी एक परिवार के हाथों की कठपुतली होने से बचाने का सन्देश देना चाहती हैं। अब देखना होगा की इस राजनीतिक रस्साकशी के खेल में कौन होता है बाजीगर और कौन होगा खतरों का खिलाड़ी ! लेकिन एक बात तो तय है की गीता जैन जी के रूप में मीरा भाइंदर शहर को एक स्वच्छ प्रतिमा रखने वाला नेतृत्व मिलाने की उम्मीद जताई जा रही है लेकिन गीता जैन जी को खुलकर मैदान में उतर जाना चाहिए ऐसा राजनैतिक जानकारों का कहना है।
~ मोईन सय्यद (संपादक लोकहित न्यूज)


23 July 2018

गौरक्षा? कितनी सच्ची! कितनी झूठी!

गौरक्षा? कितनी सच्ची! कितनी झूठी!
२३ जुलाई, मुंबई। जब से भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी है तब से देश का माहौल ऐसा बन चूका है की सच्चाई कोई समझ नहीं पा रहा है या फिर सबकुछ समझकर अनजान बने रहना चाह रहा है? गौरक्षा के नामपर आये दिन मुसलमानों को चुनचुनकर मौत के घात उतारा जा रहा है। क्या इन हत्याओं के पीछे असल कारण सिर्फ गौरक्षा है? या यह सब कुछ एक राजनैतिक षडयंत्र के तहत किया जा रहा है? 
18 जुलाई का मध्यप्रदेश का एक उदाहरण देखिये! दो हजार गायों की खाल से भरा पच्चीस टन वजनी ट्रक पुलिस ने पकड़ा। जिन तीन लोग १) नरेंद्र प्रजापत २) उमेश प्रजापत ३) रवि कन्हैयालाल को इस ट्रक को ले जाते हुए पकड़ा है वो सभी हिन्दू समाज के लोग है जो गाय को अपनी माता मानते है और आजकल गौरक्षा के नामपर इंसानों की धड़ल्ले से हत्याएं कर रहे हैं। अब जाहिर सी बात है की दो हजार गायों की खाल निकाली गई है तो उन गायों की हत्या ही हुई होगी? तो अब सवाल उठता है की ये हत्याएँ किसने की? ये कौन लोग है इस गौवंश के चमड़े का व्यापार करनेवाले? यह तो सिर्फ एक ट्रक पकड़ा गया है ऐसे कई ट्रक रोजाना सैकड़ों टन गायों के खाल की तस्करी कर बाजार में बेच रहे है और करोडो का टर्न ओवर किया जा रहा है। तो फिर गौरक्षा के नामपर मुसलमानों को कौन और क्यों मार रहा है? क्या इन हत्याओं के पीछे गौरक्षा ही एकमात्र कारण है या कुछ और कारण है? तो जान लीजिये की इसके पीछे छुपा है बहुत बड़ा अर्थकारण! करोड़ों का चमड़े का व्यापार! असल में जो लोग गोमांस और गोवंश के खाल के व्यापार से जुड़े है वो लोग नहीं चाहते की कोई मुसलमान खुले बाजार में गोवंश का व्यापार करे। ताकि खुले बाजार में बिकनेवाले सभी जानवरों को वो इकठ्ठा खरीद सके और उन्हें कत्तलखानों में क़त्ल कर उनके मांस और चमड़े का व्यापार कर सकें। 
देश की आबादी के पच्चीस प्रतिशत में ज्यादातर मुसलमान मेहनतकश होते हैं। वो या तो किसानी-मजदूरी  करते हैं या फिर छोटेमोटे व्यापार-धंधे कर अपना गुजारा करते हैं उनमे से कुछ लोग जानवरों का व्यापार भी करते हैं जो गाँव गाँव जाकर खुले बाजार से जानवर खरीदते है और इन्हे थोक मंडी में बेचकर मुनाफा कमाते हैं। जब से भाजपा की सरकार सत्ता में आई है देशभर में अचानक गौमाता के रक्षकों की बाढ़ सी आ गई है। और इन तथाकथित गौरक्षकों द्वारा जानवरों का छोटा-मोटा व्यापार करनेवाले मुसलमानों को पिट-पीटकर मार दिया जा रहा है ताकि ये मुसलमान डर के मारे खुले बाजार से जानवरों की खरीद फरोख्त बंद कर दे और वो सभी गौवंश सीधे बड़े बड़े कत्लखानो में भेजकर उन्हें क़त्ल कर उनके मांस और चमड़े को बेचकर मोटा मुनाफा कमाया जा सके। तो यह है इस गौरक्षा के पीछे का असली अर्थकारण! 
पिछले कुछ सालों से देशभर में सैकड़ों गौशालाएं खोली जा रही हैं। लेकिन क्या इन गौशालाओं में गायों की रक्षा हो रही है? क्या उनकी सही देखभाल हो रही है? कुछ एक गौशालाओं को छोड़ दें तो लगभग सभी गौशालाओं  में जानवरों को नारकीय अवस्था में रखा जा रहा है जिसके फोटो और वीडियो आये दिन सोशल मिडिया पर देखने को मिलते हैं। आप सिर्फ गूगल पर सर्च कीजिये गौशालों का क्या हाल है आपको पता चल जाएगा। वहां गायों की ऐसी हालत है की उन्हें ठीक से चारा-पानी नहीं दिया जाता, बीमार पड़ने पर वो तड़प-तड़प कर मर जाती हैं लेकिन उनका इलाज नहीं किया जाता, वहां गायों को गन्दी और बदबूदार जगहों पर बद से बदतर हालत में रखा जा रहा है। तो इस तरह अगर सही में गायों की रक्षा हो रही है तो अब हमारा देश लाखों टन बीफ़ निर्यात कैसे कर रहा है? कहाँ से आता है ये गौमांस? गायों के चमड़े का व्यापार कैसे बढ़ रहा है? है कोई इन सवालों का जवाब देनेवाला?
हमारा उन जीवदया के लिए कार्य करनेवाले बुद्धिजीवियों से निवेदन हैं की इस बारें सरकार से सवाल करें की यह किस तरह की गौरक्षा की जा रही? गायों को बचाने के नामपर कबतक इंसानों को मारा जाएगा? क्या आप लोगों की नज़रों में इंसानों की जान की क़ीमत कुछ भी नहीं? 
यहाँ निचे कुछ सन्दर्भ दिए हैं -
(https://indianexpress.com/article/world/india-third-biggest-beef-exporter-fao-report-4772389/)
(https://hindi.news18.com/blogs/abhay/beef-politics-reality-india-slaughterhouse-419142.html)
(https://navbharattimes.indiatimes.com/business/business-news/india-on-top-in-exporting-beef/articleshow/48424838.cms)







(यह तस्वीरें देश की विभिन्न गौशालाओं से ली गई है )



22 June 2018

आमची खेळण्याची जागा आम्हाला परत द्या! पंतप्रधान, मुख्यमंत्री, आमदाराकडे मिरारोडच्या चिमुरड्यांची मागणी





मिरारोड - मिरारोडच्या शांतीपार्क - गोकुळ व्हिलेज मधील रहिवाशांच्या हक्काच्या आरजी जागेत अतिक्रमण करुन बांधलेल्या दोन बेकायदा धार्मिक स्थळांवर कारवाई करु नये म्हणुन भाजपाने पालिकेवर दबाव टाकला असताना दुसरीकडे सदर जागेत जाऊन लहान मुलांनी मात्र आमच्या खेळण्याची जागा परत करा असं साकडं थेट पंतप्रधान, मुख्यमंत्री, आमदार यांना घालत निदर्शने केली. तर शासनासह उच्च न्यायालयाचे बेकायदा धार्मिक स्थळांवर कारवाईचे स्पष्ट आदेश असताना आमच्या जागा बळकावण्यासाठी राजकारण करणाऱ्यांचा निषेध करीत असल्याचे रहिवाशी म्हणाले. यामुळे रहिवाशांच्या जागांवर डल्ला मारणाऱ्याना धार्मिक मुद्याआड पाठींबा देणाऱ्या  सत्ताधारी भाजपासह महापालिकेच्या भुमिकेकडे आता नागरीकांचे लक्ष लागले आहे.  

मिरारोडच्या शांतीपार्क वसाहती मधल्या गोकुळ व्हिलेज मधील एका आरजी जागेत दोन मोठया धार्मिक स्थळांची अनधिकृत बांधकामे झाली आहेत.  2005 - 2006 पासुन पालिकेने या बेकायदा बांधकामांना नोटीसा बजावल्या. तत्कालिन आयुक्तांनी विकासक, धार्मिक स्थळ संचालक व रहिवाशी यांची बैठक बोलावुन वाढिव बांधकाम तोडण्याचे सर्वानी मान्य करुन देखील काहीच झाले नाही. 2012 साली तत्कालिन उपायुक्त सुधिर राऊत यांनी आरजी जागेतील दोन धार्मिक स्थळं अनधिकृत ठरवत तोडण्याचा आदेश दिला होता. पण तरी देखील पालिकेने कारवाई केली नाही. 

2015 साली तर पालिकेने सदर आरजीच्या जागा चक्क अनधिकृत बांधकाम न हटवताच देखभालीच्या नावाखाली विकासका सोबत करारनामा करुन ताब्यात घेतल्या. त्यातच सत्ताधारी भाजपाने महासभेत ठराव करत अतिक्रमण करुन बेकायदा बांधकाम करणाऱ्या  संस्थेलाच सदर आरजी जागा देखभाल दुरुस्तीसाठी देण्याचे मंजुर केले.  काँग्रेस समर्थक नगरसेवक राजीव मेहरा यांनी आरजीची जागा मंडळास देण्या बद्दलची वस्तुस्थितीची विचारणा केली असता अतिरीक्त आयुक्त माधव कुसेकर यांनी सुनावणी घेउन सदर दोन्ही धार्मिक स्थळावर कारवाईचे आदेश दिले.  

रहिवाशांच्या जागेत कब्जा करुन धार्मिक स्थळं बांधलेल्या संचालकांसह भाजपाचे नगरसेवक, पदाधिकारी आदींनी महापालिकेत जाऊन उपायुक्तांना कारवाई न करण्याचा इशारा दिला. काहींनी तर विटेला हात लावला तर आत्मदहन करुन असा दम भरला.  शांतता भांग करण्याचा त्यांचा डाव आहे,  केवळ विशीष्ट धार्मिक स्थळांवर  एकतर्फी कारवाई नको आदी मागण्या केल्या. या मुळे विशीष्ट धार्मिक स्थळं लक्ष्य केली जात असल्याचे चित्र उभे करत राजकिय फायद्यासाठी धार्मिक भावना भडकावण्याचा प्रकार भाजप करीत असल्याची टिका केली जात आहे. 

दरम्यान येथील रहिवाशी व लहान मुलांनी सदर आरजी जागेत जाऊन निदर्शने केली. ही जागा आमच्या खेळण्यासाठी आहे व ती आम्हाला परत द्या अशी मागणी त्यांनी थेट पंतप्रधान, मुख्यमंत्री व आमदार यांच्याकडे केली आहे. आमची खेळण्याची जागा असताना आम्ही रस्त्यावर का खेळायचे? असा सवाल देखील या मुलांनी केलाय . 

आरजीची जागा आमच्या हक्काची असुन त्यात अतिक्रमण करुन झालेल्या बेकायदा बांधकामावर कारवाई होऊ नये म्हणुन दबाव टाकणाऱ्या राजकिय पक्षाच्या नगरसेवकां बद्दल  स्थानिक रहिवाशांनी नाराजी व्यक्त केली आहे .  



आज ही जागा काही कोटी रुपये किमतीची असुन जर अनधिकृत धार्मिक स्थळांचा तुम्हाला इतकाच पुळका आहे तर तुमच्या मालकीच्या जागेत ती बांधुन द्या असे रहिवाशांनी भाजपा नगरसेवकांना सुनावले आहे.  येथील इमारती जुन्या झाल्या असुन पुर्नविकास करायला घेऊ तेव्हा आरजीच्या जागा अतिक्रमण मुक्त व आमच्या ताब्यात असतील तरच आम्हाला पुर्नविकास फायदेशीर ठरणार असल्याचं देखील काहींनी बोलुन दाखवलं. राजकिय रंग देऊन धार्मिक तणाव निर्माण करु नका अशी मागणी सुध्दा त्यांनी केली.